Sunday, April 23, 2017

मृग्‍ाी......


मैं मृग्‍ाी
कस्‍तूरी सी
देहगंध तुम्‍हारी
ढूंढती फि‍रती
दसों दि‍शाएं

मि‍लते हो
जब ख्‍वाबों में
होते अलि‍ंगनबद्ध
फूटती है सुगंध
अपने ही
तन से

वि‍चरती हूं
भावनाओं के वन मेंं
अब तुम
मोहि‍त से हो भंवरे
कलि‍यां चटखती हैं
दि‍वस जैसे मधुमास
मैं मृगनयनी
तुम कस्‍तूरी
जीवन में तुमसे ही
है सारा सुवास 

तस्‍वीर....इस जंगली फूल की खुश्‍बू बहुत ही मादक होती है। 

4 comments:

'एकलव्य' said...

सुन्दर पंक्तियाँ ,आभार।

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुकमा नक्सली हमला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

कौशल लाल said...

सुन्दर

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रभावी रचना ।