Friday, March 3, 2017

सूनी सी है दोपहर


शांत..सूनी सी है दोपहर 
उजली-चमकती धूप बैठी है पीपल के पत्‍तों पर...न ढलती है शाम
न बीतता है वक्‍त...
लगातार बज रही एक धुन है.... उदासी का राग जाने कौन अलाप रहा है.....

मन भागना चाहता है अतीत की ओर.....और मैं गुजरे वक्‍त की रस्‍सी को जल्‍दी से समेट कर आगे देखना चाहती हूं....
कि जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं....ऐसा नहीं कि तुम नहीं तो दुनि‍या नहीं...

फागुन फि‍र से आया है .......रंग अब भी चमकीले हैं पहले की तरह 

तस्‍वीर- रामगढ़ घाटी में थी थी एक दि‍न 

3 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर कोलाज़

Onkar said...

सुन्दर रचना

महेन्‍द्र वर्मा said...

सुंदर अभिव्यक्ति ।