Tuesday, February 21, 2017

मुड़कर देखना


अपने इंतजार को
पेंडुलम की तरह झूलता देख
दर्द को सीने में दबाए,
बस..जाना ही चाहती थी दूर

कि‍ तभी
मुड़कर देखना चाहा
एक अंतिम बार
उस मासूम से चेहरे को
जि‍सने छीन लि‍या मेरा चैन

यहीं
हो गई एक प्‍यारी भूल
कि झुककर चाहा
चूम लूं अंति‍म बार
अपने प्रि‍य का गरदन

और कह जाऊं
जी न पाएंगे तुम बि‍न
कि‍ वजूद सारा
डूबा है प्रेम में
और कुछ बचा नहीं मेरे अख्‍़ति‍यार में

अब तुम हो...चंद सांसे हैं
अधरों पर अंकि‍त है
एक सुहाना अहसास
मोगरे के फूलों सा महकता
मन का आंगन

बस तेरी याद....तेरी याद

4 comments:

kuldeep thakur said...

दिनांक 23/02/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...

दिगम्बर नासवा said...

जब उनकी यादों का सिलसिला शुरू होता है ख़ुद पे इख़्तियार भी कहाँ रहता है ...

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर।

Sudha Devrani said...

वाह!!!