Sunday, March 20, 2016

गौरैया फि‍र से आना .....



कभी-कहीं दि‍ख जाती हैं एक साथ हजारों गौरैया तो वाकई बहुत अच्‍छा लगता है। कुछ साल पहले मैंने ये तस्‍वीर ली थी जो मुझे बेहद पसंद है। एक ढलती शाम में गौरैयों के बसेरे से आती चहचहाहट ने मेरे पांव थाम लि‍ए थे।  बहुत देर मैं इन्‍हें देखती रही। हर डाल पर पत्‍तों की जगह गौरैया बैठी थी। वो पल मैं कभी नहीं भूल सकती।

पि‍छले दि‍नों मैं गांव गई थी। वहां पहले की तरह आंगन है। मैं और मामी आंगन में बैठ कर बातें कर रहे थे। वहीं एक परात में पानी रखा हुआ था। कुछ देर में दो गौरैया आई और उस पानी में नहाने लगी। बि‍ल्‍कुल हमारे पास। मैं बेहद खुश होकर उन्‍हें देखती रही। उस वक्‍त कैमरा नहीं था मेरे पास और मोबाइल भी दूर रखा था।  मुझे लगा मैं उठूंगी तो ये भाग जाएंगी। फि‍र इन्‍हें देखने का सुख भी जाता रहेगा।

वो दोनों मजे से नहाती रहीं। फि‍र बाहर नि‍कलकर बदन झाड़ा आैर आंगन में गि‍रा दाना चुगने लगी। मैंने पूछा मामी से, ये रोज आती हैं क्‍या। मामी बोलीं....इनको आदत हो गई है यहां रहने की। अपने मन से आती-जाती रहती है। मैं चावल चुनती हूं तो मेरे साड़ी के पास सट जाती है।

मुझे बेहद अच्‍छा लगा क्‍योंकि‍ इन दि‍नों मेरे छत पर गौरैया नहीं उतरती। हां बहुत सारे कबूतर और कौए आते हैं। पर गौरैयों ने आना छोड़ दि‍या। वजह शायद यही रही होगी कि‍ मैंने एक बि‍ल्‍ली को गौरैये की ताक में छत पर एक गमले के पीछे छुपा देखा था। शायद उसने दाना चुगती कि‍सी गौरैये को मार डाला होगा। तब से एक भी गौरैया नहीं आती। मैं मि‍स करती हूं। रोज दाना-पानी देती हूं सुबह। मेरे छत पर जाते ही सैकड़ों कबूतर उतरते हैं मगर गौरैया नहीं। मुझे उम्‍मीद है कि‍ एक दि‍न मेरे छत पर भी गौरैयों की चहचहाहट होगी।

आज 'वि‍श्‍व गौरया दि‍वस' पर हम संकल्‍प लें इन्‍हें बचाने की, ताकि‍ इनकी चहचहाहट से हमारा आंगन , छत और मन गुलजार रहे। 

1 comment:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!