भीत पर उकेर रही थी उंगलियां
पहाड़, पंछी
उगता सूरज
रामतोरई डूबो
सुंदर फूल उगाए थे
लड़की ने
इस सोहराई में
घर की खड़िया पुती दीवार पर
उसका मन फिर मचल रहा है
देख सुहाती सी धूप
रंग-बिरंगे फूल और
चटखती कलियां
जंगली फूलों सा लड़की का मन
हरा-भरा है
हाथों में रंग भरकर घर के पीछे वाली
दीवार पर
भरी दोपहरी
चांद उगा आई है
जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
7 comments:
जय मां हाटेशवरी....
आप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 06/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
वाह, बहुत बढ़िया
आनंद दायक कविता। ....वाह!
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना
जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना
जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना
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