Tuesday, December 9, 2014

आबे-आईना हूं


तेरे ख्यालों वाली ये रात बड़ी गहरी है !!
मेरे पाँव में खाबों की पाजेब सुनहरी है !!

जाने कब ओढ़ी थी तेरे प्यार की चुनर,
वक़्त अब बोला ये झीनी है, इकहरी है !!

तुझे अपना तो माना परखा नहीं कभी ,
फरेब औ’वफ़ा के दर्मियाँ जान ठहरी है !!

पशोपेश के दर्द-ऐ-खलिश से नावाकिफ,
मेरी हर नज्म पे तेरे रुख सी दुपहरी है !!

आबे-आईना हूँ मैं तू फाखिरे–ज़माल सही,
आके देख आँख मेरी अब भी रुपहरी है !!

सहरा की रेत में सराब सी खामोख्याली,
जम गई बर्फ सी ,वो मन की लहरी है !!

तस्सवुर की दास्ताँ खुश्क ‘झरना’ हूँ मैं ,
बादल सा बाँध मुझे तो किस्मत तेरी है !!

तेरे ख्यालों वाली ये रात बड़ी गहरी है !!
मेरे पाँव में खाबों की पाजेब सुनहरी है !!
शब्‍दार्थ...
पशोपेश - असमंजस
दुपहरी - चमक
रुख - चेहरा
फाखिरे –ज़माल - रूप का अभिमानी
आबे-आईना - दर्पण सी निर्मल
सराब - मरीचिका
लहरी - नदी

9 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 11/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

अभिषेक शुक्ल said...

बहुत ख़ूब।

कालीपद "प्रसाद" said...

लाजवाब !
विस्मित हूँ !

दिगम्बर नासवा said...

जाने कब ओढ़ी थी तेरे प्यार की चुनर,
वक़्त अब बोला ये झीनी है, इकहरी है ...
बहुत ही लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... कुछ कहते हुए ...

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

Dipanshu Ranjan said...

वाह क्या खूब...... बहोत उम्दा !!!!

Sadhana Vaid said...

वाह ! बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है ! हर शेर उम्दा है ! हर भाव गहरा है !

dr.mahendrag said...

मत पूछना कि‍ कैसे गुजरी रातें ये दि‍न, तेरे बि‍न !
मान लेना काट दी उम्र ख्‍वाब की चादर बुनते हुए !!
सुन्दर रचना हेतु बधाई , रश्मिजी,

Unknown said...

Khubsurat gazal