Sunday, July 28, 2013

अक्‍स तेरा ही झलकता है....


मेरे
मन के आंगन में
लगे
तुलसी के बि‍रवे को
प्रेम-जल से
सींचती रही हूं बरसों

संचि‍त कर सीने में
रखा है उस एक छुअन को
जो मेरे माथे पर 
सिंदुरी होंठों से
रख दि‍या था तुमने

मेरे प्राण, मेरे श्रृंगार
आईने में
जब भी रूप मेरा
दमकता है
आंखों के काजल से ले
हाथों की मेंहदी तक
अक्‍स तेरा ही
झलकता है.....


तस्‍वीर--साभार गूगल

3 comments:

वाणी गीत said...

जो दिल में है ,वही चेहरे पर झलकता है !
खूब भालो :)

Dr. Shorya said...

सुंदर रचना

http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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