Tuesday, January 1, 2013

देश का कलंक

साल का पहला दि‍न
गुजरा
कुछ मुरझाया सा

और
अब चांद नि‍कला है
पीला
कुछ कुम्‍हलाया सा

कर दि‍या है शायद
उसे भी मायूस
कुछ उदास चेहरों ने
देश पर लगा दाग
है उसके दाग से भी बड़ा
हम सा है चांद भी
अपने देश के कलंक से
कुछ शरमाया सा......

5 comments:

ओंकारनाथ मिश्र said...

सच में यह वेदना तो अब आकाशीय पिंडो को भी मालूम हो गया है.दुखद.

Unknown said...

sundar aur samvedansheel rachanaशायद
उसे भी मायूस
कुछ उदास चेहरों ने
देश पर लगा दाग
है उसके दाग से भी बड़ा
हम सा है चांद भी
अपने देश के कलंक से
कुछ शरमाया सा...... NEW POST -Ghoonght

Rohitas Ghorela said...

सही कहा है रश्मि जी आपने ..बहुत खूब लिखा है !
यहाँ पर आपका इंतजार रहेगाशहरे-हवस

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मन को छू लेने वाली रचना...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

दिल को छूती भावपूर्ण रचना,,,,

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